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"यदि जान भी लोगे, तो क्या कर लोगे? / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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ब्रज अनुवादः
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जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?/ रश्मि विभा त्रिपाठी
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जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?
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साँच पीर मैं कराहत धराधरनि कौ
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दरद खेतनि सौं पेट न भरिबे कौ
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घरनि के ऊजर रीते हैबै कौ
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वननि के कटिबे वानर राज हैबे कौ
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जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?
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साँच सड़कनि पै सजति मौतनि कौ,
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रोवत ललनि अरु सुसुकति महरियनि कौ
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रीते होत गामनि अरु धधकत वननि कौ,
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हिरावत अपुनपौ, संवेदनहीन नातनि कौ
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जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?
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सूखत सोतनि हिरात बुराँस के फूलनि कौ
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बुनत भए सड़कनि के अरथहीन जालनि कौ
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बिचत मूल्य, उफनत राजनेतनि के बचननि कौ
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जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?
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08:15, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

यदि जान भी लोगे, तो क्या कर लोगे?

पीड़ा में कराहते पहाड़ों का सच
दर्द- खेतों से पेट न भरने का
बर्तनों-गागरों के प्यासे रहने का
घरों के उजड़ने, खाली होने का
वनों के कटने, वानर-राज होने का

यदि जान भी लोगे, तो क्या कर लोगे?

सच-सड़कों पर सजती मौतों का,
रोते शिशुओं और सिसकती औरतों का,
खाली होते गाँवों और धधकते वनों का,
खोते अपनेपन, संवेदनहीन रिश्तों का।

यदि जान भी लोगे, तो क्या कर लोगे?

सच- खाली होती पंचायतों स्कूलों का,
सूखते स्रोतों, खोते बुराँस के फूलों का,
बुनते हुए सड़को के अर्थहीन जालों का,
बिकते मूल्यों, उफनते राजनेताओं के वादों का

यदि जान भी लोगे, तो क्या कर लोगे?
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ब्रज अनुवादः
जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?/ रश्मि विभा त्रिपाठी

जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?

साँच पीर मैं कराहत धराधरनि कौ
दरद खेतनि सौं पेट न भरिबे कौ
बासननि गागरनि के प्यासे रहिबे कौ
घरनि के ऊजर रीते हैबै कौ
वननि के कटिबे वानर राज हैबे कौ

जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?

साँच सड़कनि पै सजति मौतनि कौ,
रोवत ललनि अरु सुसुकति महरियनि कौ
रीते होत गामनि अरु धधकत वननि कौ,
हिरावत अपुनपौ, संवेदनहीन नातनि कौ

जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?

साँच रीती होतिं पंचायतनि स्कूलनि कौ
सूखत सोतनि हिरात बुराँस के फूलनि कौ
बुनत भए सड़कनि के अरथहीन जालनि कौ
बिचत मूल्य, उफनत राजनेतनि के बचननि कौ

जो जानि ऊ लैहौ, तौ का करि लैहौ?
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