"प्यासा पथिक / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह=मन के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
अंकुरण हो न हो, तुम प्रस्फुटन चाहते, | अंकुरण हो न हो, तुम प्रस्फुटन चाहते, | ||
कैसे हो, कतारें तुमने कभी बोयी नहीं। | कैसे हो, कतारें तुमने कभी बोयी नहीं। | ||
+ | -0- | ||
+ | |||
+ | ब्रज अनुवाद: | ||
+ | पियासौ पंथी/ रश्मि विभा त्रिपाठी | ||
+ | |||
+ | मीलन के पाथर गनत भएँ सिरे पहर | ||
+ | अँखियाँ अबहूँ लौं सोई नाहिं | ||
+ | एक ऊ धकधकी इमि नाहिं जु | ||
+ | सुरति मैं तोरी कबहूँ खोई नाहिं | ||
+ | घरी घरी गुहि रईं सुसुकिनि अँखियाँ | ||
+ | पै पलकैं हौं अभै भिंजोई नाहिं | ||
+ | जीवन की कहनि करुई होति गई | ||
+ | पै आस हौं अभै डुबोई नाहिं | ||
+ | पियासौ पंथी बनि रतियनि कौं, | ||
+ | अंजुरीं तुव कबहूँ सँजोई नाहिं | ||
+ | बिरथ जे हिलनि की लर सपनीली | ||
+ | साँचेहुँ तुव कबहूँ पोई नाहिं | ||
+ | अंकुराइबौ होइ न होइ तुव फूलिबौ चहौ | ||
+ | कत होइ, पाँत तुव कबहूँ बोई नाहिं। | ||
+ | -0- | ||
</poem> | </poem> |
09:00, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
मीलों के पत्थर गिनते हुए बीते पहर,
आँखें अब तक भी सोयी नहीं।
एक भी धड़कन ऐसी नहीं जो,
स्मृतियों में तेरी कभी खोयी नहीं ।
पल-पल गूंथ रही सिसकियाँ आँखें,
परन्तु पलकें मैंने अभी भिगोयी नहीं।
जीवन की कहानी कटु होती गयी,
परन्तु आशा मैंने अभी डुबोयी नहीं।
प्यासा पथिक बन रातों को,
अंजुलियाँ तुमने कभी संजोयी नहीं।
झूठ हैं ये प्रणय की लड़ियाँ सपनीली,
यथार्थ में तुमने कभी पिरोयी नहीं।
अंकुरण हो न हो, तुम प्रस्फुटन चाहते,
कैसे हो, कतारें तुमने कभी बोयी नहीं।
-0-
ब्रज अनुवाद:
पियासौ पंथी/ रश्मि विभा त्रिपाठी
मीलन के पाथर गनत भएँ सिरे पहर
अँखियाँ अबहूँ लौं सोई नाहिं
एक ऊ धकधकी इमि नाहिं जु
सुरति मैं तोरी कबहूँ खोई नाहिं
घरी घरी गुहि रईं सुसुकिनि अँखियाँ
पै पलकैं हौं अभै भिंजोई नाहिं
जीवन की कहनि करुई होति गई
पै आस हौं अभै डुबोई नाहिं
पियासौ पंथी बनि रतियनि कौं,
अंजुरीं तुव कबहूँ सँजोई नाहिं
बिरथ जे हिलनि की लर सपनीली
साँचेहुँ तुव कबहूँ पोई नाहिं
अंकुराइबौ होइ न होइ तुव फूलिबौ चहौ
कत होइ, पाँत तुव कबहूँ बोई नाहिं।
-0-