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ख़्वाब अब कोई मचलता क्यों नहीं
 
ख़्वाब अब कोई मचलता क्यों नहीं
 
मुश्किलों का हल निकलता क्यों नहीं
 
मुश्किलों का हल निकलता क्यों नहीं

04:25, 27 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

ख़्वाब अब कोई मचलता क्यों नहीं
मुश्किलों का हल निकलता क्यों नहीं
कोशिशों की रोशनी तो है मगर
ये अँधेरा फिर भी ढलता क्यों नहीं
मन की गलियों में बिखेरे खुशबुएँ
फूल ऐसा कोई खिलता क्यों नहीं
ठोंकता है जो अमीरी को सलाम
मुफ़लिसी पर वो पिघलता क्यों नहीं
बात बन जाए तो वाह-वाह हर तरफ
सर कोई लेता विफलता क्यों नहीं
उम्र ढलती जा रही है हर घड़ी
ख्वाहिशों का जोर ढलता क्यों नहीं