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"धूवेँ का जंगल / ईश्वरवल्लभ / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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उपर आसमान को देखना है
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ऊपर आसमान को देखना है,
क्षितिज को छुना है .
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क्षितिज को छूना है।
  
किसी को एक फूल देना है
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किसी को एक फूल देना है,
आसपास कोई है कि नही !
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आसपास कोई है या नहीं!
यदि कोई है तो उसे बुलाना है ।
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यदि कोई है तो उसे बुलाना है।
  
फिर कोई लहर व लस्कर बनाके दूर तक पहुँचना है
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फिर कोई लहर या लश्कर बनाकर दूर तक पहुँचना है।
साम का रक्तिम सूरज
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शाम का रक्तिम सूरज
खो गया शायद कहीं  
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खो गया शायद कहीं,
सुब्ह का भोर भी दिखाई नहीं दिया,  
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सुबह का भोर भी दिखाई नहीं दिया,
निचे जानेवाले रास्ता भी नहीं है।
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नीचे जाने का रास्ता भी नहीं है।
  
कहाँ गए वे बस्तीयाँ ?
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कहाँ गए वे बस्तियाँ?
कहाँ गए वे रिस्तेदार ?
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कहाँ गए वे रिश्तेदार?
  
इसी धूवेँ की जंगल मे सब को ढुँडना है ।
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इसी धुएँ के जंगल में सबको ढूँढना है।
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''यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ-''
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'''[[धूवाँको जङ्गल / ईश्वरवल्लभ]]'''
 
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19:44, 31 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

ऊपर आसमान को देखना है,
क्षितिज को छूना है।

किसी को एक फूल देना है,
आसपास कोई है या नहीं!
यदि कोई है तो उसे बुलाना है।

फिर कोई लहर या लश्कर बनाकर दूर तक पहुँचना है।
शाम का रक्तिम सूरज
खो गया शायद कहीं,
सुबह का भोर भी दिखाई नहीं दिया,
नीचे जाने का रास्ता भी नहीं है।

कहाँ गए वे बस्तियाँ?
कहाँ गए वे रिश्तेदार?

इसी धुएँ के जंगल में सबको ढूँढना है।
०००

यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ-
धूवाँको जङ्गल / ईश्वरवल्लभ