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"स्वगत: / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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स्थित प्रज्ञ —
(यह रचना 'वाणी प्रकाशन' से 1994 में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'भूल जाओ पुराने सपने' से है )
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निर्लिप्त, निरंजन...
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युगावतार !
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जो कुछ भी होना था
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सब हो चुके आप !
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ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
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आपकी कीर्ति-
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जल-थल-नभ में गई है व्याप !
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सब कुछ हो आप !
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प्रभु, क्या नहीं हो आप !
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क्षमा करो आदरणीय,
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अकेले में, अक्सर
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मैंने आपको
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दुर्वचन कहे हैं !
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नहीं कहे हैं क्या ?
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हाँ, हाँ, बारहा कहे हैं
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मैंने आपको दुर्वचन, जी भर के फटकारा है,
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जी हाँ, अक्सर फटकारा है,
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क्षमा करो, प्रभु !
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महान हो आप...
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महत्तर हो, महत्तम हो
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क्‍या नहीं हो आप ?
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मेरी माँ, मेरे बाप !
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क्या नहीं हो आप ?
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03:07, 30 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

आदरणीय,
अब तो आप
पूर्णतः मुक्त जन हो !
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड...
जी हाँ, कोई ससुरा
आपकी झाँट नहीं
उखाड़ सकता, जी हाँ !!
जी हाँ, आपके लिए
कोई भी करणीय-कृत्य
शेष नहीं बचा है,
जी हाँ, आप तो अब
इतिहास-पुरुष हो

स्थित प्रज्ञ —
निर्लिप्त, निरंजन...
युगावतार !
जो कुछ भी होना था
सब हो चुके आप !
ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
आपकी कीर्ति-
जल-थल-नभ में गई है व्याप !
सब कुछ हो आप !
प्रभु, क्या नहीं हो आप !
क्षमा करो आदरणीय,
अकेले में, अक्सर
मैंने आपको
दुर्वचन कहे हैं !
नहीं कहे हैं क्या ?
हाँ, हाँ, बारहा कहे हैं
मैंने आपको दुर्वचन, जी भर के फटकारा है,
जी हाँ, अक्सर फटकारा है,
क्षमा करो, प्रभु !
महान हो आप...
महत्तर हो, महत्तम हो
क्‍या नहीं हो आप ?
मेरी माँ, मेरे बाप !
क्या नहीं हो आप ?