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"माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी, | रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी, | ||
− | इस दौर में अब इतनी मदारात | + | इस दौर में अब इतनी मदारात बहुत है । |
दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम, | दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम, | ||
कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है । | कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है । | ||
− | फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' | + | फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' से |
अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है । | अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है । | ||
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18:33, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है,
सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है ।
दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर इक बात,
ऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत है ।
महिने में किसी रोज़, कहीं चाय के दो कप,
इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है ।
रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी,
इस दौर में अब इतनी मदारात बहुत है ।
दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम,
कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है ।
फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' से
अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है ।
शब्दार्थ
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