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"बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा | माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा | ||
− | तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी | + | तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी से |
− | मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर | + | मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर था घर में |
− | अब हैं महरूम | + | अब हैं महरूम परिंदों की भी मेहमानी से |
रात देखो न कभी दिन का कोई पास रखो | रात देखो न कभी दिन का कोई पास रखो |
20:48, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से
फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी से
माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी से
मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर था घर में
अब हैं महरूम परिंदों की भी मेहमानी से
रात देखो न कभी दिन का कोई पास रखो
मैं तो हारा हूँ बहुत आप की मन मानी से
मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने
अब खड़े देखते क्या हो मुझे हैरानी से
इसमें राँझाओं की नालायकि़यों का क्या है
इश्क़ जिंदा है तो बस हुस्न की क़ुर्बानी से
कोई दानाई यहाँ काम नहीं आती ’अना’
शेर कुछ अच्छे निकल आते हैं नादानी से
शब्दार्थ
<references/>