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"ये फ़ासले भी, सात समन्दर से कम नहीं / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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पी कर तो देख इसमें ही कुल कायनात है, | पी कर तो देख इसमें ही कुल कायनात है, | ||
− | जामे-सिफ़ाल | + | जामे-सिफ़ाल मिरा जामे-जम नहीं । |
तुमको अगर नहीं है शऊरे-वफ़ा तो क्या, | तुमको अगर नहीं है शऊरे-वफ़ा तो क्या, | ||
− | हम भी कोई मुसाफ़िरे-दश्ते-अलम | + | हम भी कोई मुसाफ़िरे-दश्ते-अलम नहीं । |
− | टूटे तो ये सुकूत | + | टूटे तो ये सुकूत का आलम किसी तरह, |
गर हाँ नहीं, तो कह दो ख़ुदा की क़सम, नहीं । | गर हाँ नहीं, तो कह दो ख़ुदा की क़सम, नहीं । | ||
− | इक तू, कि लाज़वाल | + | इक तू, कि लाज़वाल तिरी ज़ाते-बेमिसाल, |
− | इक मैं के जिसका कोई वजूदो-अ़दम | + | इक मैं के जिसका कोई वजूदो-अ़दम नहीं । |
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21:04, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
ये फ़ासले भी, सात समन्दर से कम नहीं,
उसका ख़ुदा नहीं है, हमारा सनम नहीं ।
कलियाँ थिरक रहीं हैं, हवाओं के साज़ पर,
अफ़सोस मेरे हाथ में काग़ज़-क़लम नहीं ।
पी कर तो देख इसमें ही कुल कायनात है,
जामे-सिफ़ाल मिरा जामे-जम नहीं ।
तुमको अगर नहीं है शऊरे-वफ़ा तो क्या,
हम भी कोई मुसाफ़िरे-दश्ते-अलम नहीं ।
टूटे तो ये सुकूत का आलम किसी तरह,
गर हाँ नहीं, तो कह दो ख़ुदा की क़सम, नहीं ।
इक तू, कि लाज़वाल तिरी ज़ाते-बेमिसाल,
इक मैं के जिसका कोई वजूदो-अ़दम नहीं ।