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"यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> यूँ इस दिले नाद…) |
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ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे, | ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे, | ||
− | मसनूई | + | मसनूई ख़ुदाओं के अबरू का है ख़म टूटा । |
बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको, | बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको, | ||
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वो शाख़े बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा । | वो शाख़े बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा । | ||
− | बेचोगे 'अना' अपनी बेकार की शय | + | बेचोगे 'अना' अपनी बेकार की शय लेकर, |
− | किस काम में आयेगा जमशेद | + | किस काम में आयेगा जमशेद का जम टूटा । |
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21:10, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा,
हो झूठी क़सम टूटी या झूठा सनम टूटा ।
सागर से उठीं आहें, आकाश पे जा पहुँचीं,
बादल-सा ये ग़म आख़िर बा दीदा-ए-नम टूटा ।
ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे,
मसनूई ख़ुदाओं के अबरू का है ख़म टूटा ।
बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको,
ख़त फाड़ के भेजा है, अलफ़ाज़ का ग़म टूटा ।
उस शोख़ के आगे थे सब रंगे धनक फीके,
वो शाख़े बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा ।
बेचोगे 'अना' अपनी बेकार की शय लेकर,
किस काम में आयेगा जमशेद का जम टूटा ।