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"वो आसमाँ मिज़ाज कहां आसमाँ से था / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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वो आस्माँ मिज़ाज कहां आस्माँ से था
 
वो आस्माँ मिज़ाज कहां आस्माँ से था
उसका वजूद भी तो इसी ख़ाकदाँ1 से था
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उसका वजूद भी तो इसी ख़ाकदाँ से था
  
उसके हरेक ज़ुल्म को कहता था अ़द्ल2 मैं
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उसके हर एक ज़ुल्म को कहता था अ़द्ल मैं
 
साया मिरे भी सर पे उसी सायबाँ से था
 
साया मिरे भी सर पे उसी सायबाँ से था
  
इक साहिरा3 ने मोम से पत्थर किया जिसे
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इक साहिरा ने मोम से पत्थर किया जिसे
 
वो क़िस्स-ए-लतीफ़ मिरी दास्ताँ से था
 
वो क़िस्स-ए-लतीफ़ मिरी दास्ताँ से था
  
गरदान4 कर मैं आया हूँ मीज़ाने-फ़ायलात5
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गरदान4 कर मैं आया हूँ मीज़ाने-फ़ायलात
अबके हमारा सामना उस नुक्तादाँ6 से था
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अबके हमारा सामना उस नुक्तादाँ से था
  
 
ये मुफ़लिसी की आँच में झुलसी हुई ग़ज़ल
 
ये मुफ़लिसी की आँच में झुलसी हुई ग़ज़ल
 
रिश्ता ये किस ग़रीब का उर्दू ज़बाँ से था
 
रिश्ता ये किस ग़रीब का उर्दू ज़बाँ से था
 
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1. धरती 2. न्याय 3. जादूगरनी 4. पुनरावृत्ति 5. छंद मापन विधि 6. श्रेष्ठ
 
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17:52, 31 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

वो आस्माँ मिज़ाज कहां आस्माँ से था
उसका वजूद भी तो इसी ख़ाकदाँ से था

उसके हर एक ज़ुल्म को कहता था अ़द्ल मैं
साया मिरे भी सर पे उसी सायबाँ से था

इक साहिरा ने मोम से पत्थर किया जिसे
वो क़िस्स-ए-लतीफ़ मिरी दास्ताँ से था

गरदान4 कर मैं आया हूँ मीज़ाने-फ़ायलात
अबके हमारा सामना उस नुक्तादाँ से था

ये मुफ़लिसी की आँच में झुलसी हुई ग़ज़ल
रिश्ता ये किस ग़रीब का उर्दू ज़बाँ से था