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छुट्टियाँ / शशि पाधा

No change in size, 11 जनवरी
कहीं आम था, कहीं अनार
कहीं था पोखर, कहीं तलैया
कहीं थी झरनों की झँकारझंकार
कभी वो तोड़ें पकते जामुन
भरी दोपहरी नील गगन में
उँचीऊँची-उँची ऊँची उड़े पतँगपतंग
बाँध के डोरी उड़ न पाएँ
मन में रहती एक उमंग
खुली छत पर श्वेत बिछौना
सप्तऋषि की गिनती करते
कभी ढूँढ़ते ढूँढते ध्रुव तारे कोचँदा चन्दा से दो बातें करते
खेल-खेल में दिन थे बीते