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"यादें, प्रेम और अनुभूति / ऋचा दीपक कर्पे" के अवतरणों में अंतर

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यादें, प्रेम और अनुभूति
जरूरी नहीं
किसी की याद आने पर
उससे बात ही की जाए

बिलकुल वैसे ही
जैसे किसी को महसूस करने के लिए
उसे छुआ जाए

और हाँ,
किसी से प्यार करने के लिए
उसका पास होना भी तो
जरूरी नही

यादें, प्रेम और अनुभूति
ईश्वर की तरह है
अदृश्य किंतु सत्य
और हाँ,
हमेशा साथ