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"मंजिलें हैं सामने, रास्ता निहां नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मंज़िलें हैं सामने रास्ता निहाँ नहीं | |
− | याद कर उसे ज़रा | + | याद कर उसे ज़रा तुझपे गर अयाँ नहीं |
− | + | फल मिलेगा कर्म का सुख यहीं है दुःख यहीं | |
− | दो जहां यहीं पे हैं | + | दो जहां यहीं पे हैं तीसरा जहां नहीं |
− | चिलमनों की ओट से | + | चिलमनों की ओट से दीदे मह-जबीं हुयी |
− | रू-ब-रू मिले यहां | + | रू-ब-रू मिले यहां ख़्वाब का गुमां नहीं |
है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के | है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के | ||
− | बेबसी तो | + | बेबसी तो देखिये तीर है कमां नहीं |
− | दो दिलों के | + | दो दिलों के दरमियाँ थी तपिश जो प्यार की |
− | आग तो लगी रही | + | आग तो लगी रही बस उठा धुवां नहीं |
− | + | जा रही है रूठकर ज़िंदगी अभी उसे | |
− | + | रोक ले पुकार कर क्या तेरे ज़बां नहीं | |
− | + | जाएगा भला किधर तू बता 'रक़ीब' अब | |
− | + | हर तरफ हैं मैकदे चाय की दुकाँ नही | |
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01:54, 26 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
मंज़िलें हैं सामने रास्ता निहाँ नहीं
याद कर उसे ज़रा तुझपे गर अयाँ नहीं
फल मिलेगा कर्म का सुख यहीं है दुःख यहीं
दो जहां यहीं पे हैं तीसरा जहां नहीं
चिलमनों की ओट से दीदे मह-जबीं हुयी
रू-ब-रू मिले यहां ख़्वाब का गुमां नहीं
है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के
बेबसी तो देखिये तीर है कमां नहीं
दो दिलों के दरमियाँ थी तपिश जो प्यार की
आग तो लगी रही बस उठा धुवां नहीं
जा रही है रूठकर ज़िंदगी अभी उसे
रोक ले पुकार कर क्या तेरे ज़बां नहीं
जाएगा भला किधर तू बता 'रक़ीब' अब
हर तरफ हैं मैकदे चाय की दुकाँ नही