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"मंजिलें हैं सामने, रास्ता निहां नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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मंजिलें हैं सामने, रास्ता निहां नहीं  
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मंज़िलें हैं सामने रास्ता निहाँ नहीं
याद कर उसे ज़रा तुझ पे गर अयां नहीं  
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याद कर उसे ज़रा तुझपे गर अयाँ नहीं
  
स्वर्ग, नर्क हैं यहीं पाप पुण्य के सबब
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फल मिलेगा कर्म का सुख यहीं है दुःख यहीं
दो जहां यहीं पे हैं, तीसरा जहां नहीं  
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दो जहां यहीं पे हैं तीसरा जहां नहीं
  
चिलमनों की ओट से दीद-ए-महजबीं हुयी  
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चिलमनों की ओट से दीदे मह-जबीं हुयी
रू-ब-रू मिले यहां, ख़्वाब का गुमां नहीं  
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रू-ब-रू मिले यहां ख़्वाब का गुमां नहीं
  
 
है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के
 
है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के
बेबसी तो देखिए, तीर है कमां नहीं  
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बेबसी तो देखिये तीर है कमां नहीं
  
दो दिलों के दरमियां थी तपिश वो प्यार की
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दो दिलों के दरमियाँ थी तपिश जो प्यार की
आग तो लगी रही, बस उठा धुवां नहीं  
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आग तो लगी रही बस उठा धुवां नहीं
  
नींव हुस्न की यहां, और छत है इश्क़ की
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जा रही है रूठकर ज़िंदगी अभी उसे
प्यार से बना है घर, ये फ़क़त मकां नहीं  
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रोक ले पुकार कर क्या तेरे ज़बां नहीं
  
जा रही है ज़िन्दगी रूठ कर तिरी उसे
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जाएगा भला किधर तू बता 'रक़ीब' अब
रोक ले पुकार कर, मुंह में क्या ज़बां नहीं
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हर तरफ हैं मैकदे चाय की दुकाँ नही
 
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अब तू ही बता मुझे, क्या क़ुसूर है मिरा
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तेरे साथ मैं गया हूं, कहां-कहां नहीं
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जाएगा भला किधर, तू बता 'रक़ीब' अब
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हर तरफ़ हैं मयकदे, चाय की दुकां नहीं
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01:54, 26 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

मंज़िलें हैं सामने रास्ता निहाँ नहीं
याद कर उसे ज़रा तुझपे गर अयाँ नहीं

फल मिलेगा कर्म का सुख यहीं है दुःख यहीं
दो जहां यहीं पे हैं तीसरा जहां नहीं

चिलमनों की ओट से दीदे मह-जबीं हुयी
रू-ब-रू मिले यहां ख़्वाब का गुमां नहीं

है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के
बेबसी तो देखिये तीर है कमां नहीं

दो दिलों के दरमियाँ थी तपिश जो प्यार की
आग तो लगी रही बस उठा धुवां नहीं

जा रही है रूठकर ज़िंदगी अभी उसे
रोक ले पुकार कर क्या तेरे ज़बां नहीं

जाएगा भला किधर तू बता 'रक़ीब' अब
हर तरफ हैं मैकदे चाय की दुकाँ नही