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"अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं
 
अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं
 
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं  
 
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं  
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अभावों से घिरी ये बस्तियाँ हैं
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कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं
  
 
पता देती हैं सावन का सभी को
 
पता देती हैं सावन का सभी को
 
कलाई में हरी जो चूड़ियाँ हैं
 
कलाई में हरी जो चूड़ियाँ हैं
  
भटकता फिर रहा जिसने कहा था
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बसी है जान कृषकों की इन्हीं में
गृहस्थ-आश्रम नहीं ये बेड़ियां हैं
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बसी है जान कृषकों की इन्हीं में  
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सुनहरी खेत में जो बालियाँ हैं
 
सुनहरी खेत में जो बालियाँ हैं
  
हृदय में कामनाएं प्रिय मिलन की
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सुगन्धित कर दिया वातावरण को
"नयन में अश्रु की चौपाइयां हैं"
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सुगन्धित कर दिया वातावरण को  
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बहुत सोंधी तवे पर रोटियाँ हैं
 
बहुत सोंधी तवे पर रोटियाँ हैं
  
चली जाए न आकर ऋतु सुहानी  
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चली जाती है आकर रुत सुहानी
अभी उपवन में उड़ती तितलियाँ हैं  
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अभी उपवन में उड़ती तितलियाँ हैं
  
बढ़ाएगा मनोबल क्या किसी का  
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बढ़ाएगा मनोबल क्या किसी का
वो जिसके हाथ में बैसाखियाँ हैं  
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वो जिसके हाथ में बैसाखियाँ हैं
  
'रक़ीब' आये न अच्छे दिन अभी तक  
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'रक़ीब' आये न अच्छे दिन अभी तक
 
गिनाने के लिए उपलब्धियाँ हैं
 
गिनाने के लिए उपलब्धियाँ हैं
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23:44, 28 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं

अभावों से घिरी ये बस्तियाँ हैं
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं

पता देती हैं सावन का सभी को
कलाई में हरी जो चूड़ियाँ हैं

बसी है जान कृषकों की इन्हीं में
सुनहरी खेत में जो बालियाँ हैं

सुगन्धित कर दिया वातावरण को
बहुत सोंधी तवे पर रोटियाँ हैं

चली जाती है आकर रुत सुहानी
अभी उपवन में उड़ती तितलियाँ हैं

बढ़ाएगा मनोबल क्या किसी का
वो जिसके हाथ में बैसाखियाँ हैं

'रक़ीब' आये न अच्छे दिन अभी तक
गिनाने के लिए उपलब्धियाँ हैं