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"बेकार है फ़ितूर दिले-बेक़रार में / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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बेकार है फ़ितूर दिले-बेक़रार में  
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बेकार है फ़ुतूर दिले-बेक़रार में
 
कुछ भी नहीं रखा है मुए प्यार-व्यार में
 
कुछ भी नहीं रखा है मुए प्यार-व्यार में
  
क्या रह गया है इश्क़ में, चाहत में, प्यार में  
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क्या रह गया है इश्क़ में, चाहत में, प्यार में
बेकार सी कशिश है दि ले बे-क़रार में  
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बेकार सी कशिश है दिले बे-क़रार में
  
बदलेगा वक़्त आएंगी ख़ुद मंज़िलें क़रीब  
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आएंगी ख़ुद क़रीब कभी मंज़िलें मिरे
यह सोचकर खड़े हैं कई इंतेज़ार में  
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यह सोचकर खड़े हैं कई इंतज़ार में
  
छाई ख़िज़ां है रुख पे हँसी है बनावटी  
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छाई ख़िज़ां है रुख पे हँसी है बनावटी
 
संजीदगी का रंग है फ़स्ल-ए-बहार में
 
संजीदगी का रंग है फ़स्ल-ए-बहार में
  
दिन का सुकून हो कि हो रातों का वो क़रार
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दिन का सुकून हो कि हो रातों का वो क़रार
 
"कुछ भी नहीं रहा है मेरे इख़्तियार में"
 
"कुछ भी नहीं रहा है मेरे इख़्तियार में"
  
देखो बिछड़ के उसकी सभी रौनकें गयीं  
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देखो बिछड़ के उसकी सभी रौनकें गयीं
तन्हा ही रह गया है वो उजड़े दयार में  
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तन्हा ही रह गया है वो उजड़े दयार में
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अब पूछने लगी है ये हमसे उमीदे-दिल
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ताउम्र क्या खड़े ही रहेंगे क़तार में
  
अब पूछने लगी है ये हमसे उमीदे-दिल 
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सबका हबीब है वो किसी का नहीं 'रक़ीब'
ताउम्र क्या खड़े ही रहेंगे क़तार में  
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लेकिन ये बात आती नहीं इश्तहार में
  
हर एक का हबीब है बस नाम है 'रक़ीब'
 
लेकिन ये बात आती नहीं इश्तेहार में
 
 
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02:22, 29 जनवरी 2025 के समय का अवतरण


बेकार है फ़ुतूर दिले-बेक़रार में
कुछ भी नहीं रखा है मुए प्यार-व्यार में

क्या रह गया है इश्क़ में, चाहत में, प्यार में
बेकार सी कशिश है दिले बे-क़रार में

आएंगी ख़ुद क़रीब कभी मंज़िलें मिरे
यह सोचकर खड़े हैं कई इंतज़ार में

छाई ख़िज़ां है रुख पे हँसी है बनावटी
संजीदगी का रंग है फ़स्ल-ए-बहार में

दिन का सुकून हो कि हो रातों का वो क़रार
"कुछ भी नहीं रहा है मेरे इख़्तियार में"

देखो बिछड़ के उसकी सभी रौनकें गयीं
तन्हा ही रह गया है वो उजड़े दयार में

अब पूछने लगी है ये हमसे उमीदे-दिल
ताउम्र क्या खड़े ही रहेंगे क़तार में

सबका हबीब है वो किसी का नहीं 'रक़ीब'
लेकिन ये बात आती नहीं इश्तहार में