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"पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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फिर ज़मीनो आसमाँ पर बोलना है | फिर ज़मीनो आसमाँ पर बोलना है | ||
− | बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो | + | बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो |
उसके अंदाज़े-बयाँ पर बोलना है | उसके अंदाज़े-बयाँ पर बोलना है | ||
− | बेबसी है, बाग़ में यह, बाग़बाँ की | + | बेबसी है, बाग़ में यह, बाग़बाँ की |
मौसमे गुल में ख़ज़ाँ पर बोलना है | मौसमे गुल में ख़ज़ाँ पर बोलना है | ||
− | माजरा क्या है भला, क्यों | + | माजरा क्या है भला, क्यों कर दुखी हो |
− | क्या तुम्हें आहो-फुगां पर बोलना है | + | क्या तुम्हें आहो-फुगां पर बोलना है |
ज़ख्म दिल के, खोलकर हमने रखे हैं | ज़ख्म दिल के, खोलकर हमने रखे हैं | ||
− | जब कहा, दर्दे-निहाँ पर बोलना है | + | जब कहा, दर्दे-निहाँ पर बोलना है |
− | थे बहत्तर, अह्ले-बेयत, जिस में शामिल | + | थे बहत्तर, अह्ले-बेयत, जिस में शामिल |
− | उस मुक़द्दस कारवाँ पर बोलना है | + | उस मुक़द्दस कारवाँ पर बोलना है |
− | ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब | + | ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब |
ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है | ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है | ||
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00:53, 30 जनवरी 2025 का अवतरण
पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है
फिर ज़मीनो आसमाँ पर बोलना है
बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो
उसके अंदाज़े-बयाँ पर बोलना है
बेबसी है, बाग़ में यह, बाग़बाँ की
मौसमे गुल में ख़ज़ाँ पर बोलना है
माजरा क्या है भला, क्यों कर दुखी हो
क्या तुम्हें आहो-फुगां पर बोलना है
ज़ख्म दिल के, खोलकर हमने रखे हैं
जब कहा, दर्दे-निहाँ पर बोलना है
थे बहत्तर, अह्ले-बेयत, जिस में शामिल
उस मुक़द्दस कारवाँ पर बोलना है
ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब
ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है