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"पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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01:31, 30 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है
बाद में अहले जुबां पर बोलना है
बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो
उसके अंदाज़े-बयाँ पर बोलना है
बेबसी है, बाग़ में यह, बाग़बाँ की
मौसमे गुल में ख़ज़ाँ पर बोलना है
माजरा क्या है भला, क्यों कर दुखी हो
क्या तुम्हें आहो-फुगां पर बोलना है
ज़ख्म दिल के, खोलकर हमने रखे हैं
जब कहा, दर्दे-निहाँ पर बोलना है
थे बहत्तर, अह्ले-बेयत, जिस में शामिल
उस मुक़द्दस कारवाँ पर बोलना है
ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब
ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है