भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है
 
चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है
आप बतलायें हमें यह प्रार्थना है
+
आप बतलायें हमें यह प्राथना है
  
 
कर सको जितनी अधिक सेवा करो बस
 
कर सको जितनी अधिक सेवा करो बस
भूल मत जाना उसे जिसने जना है  
+
भूल मत जाना उसे जिसने जना है
  
 
ज्ञान की गंगा बहाये जो धरा पर
 
ज्ञान की गंगा बहाये जो धरा पर
वह भगीरथ अब हमें फिर ढूँढना है  
+
वह भगीरथ अब हमें फिर ढूँढना है
  
जानते हैं हम बहुत बलवान हो तुम  
+
जानते हैं हम बहुत बलवान हो तुम
 
पर विरोधी को नहीं कम आंकना है
 
पर विरोधी को नहीं कम आंकना है
  
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
साथ सूरज के तुझे फिर जागना है
 
साथ सूरज के तुझे फिर जागना है
  
सुन 'रक़ीब' ईश्वर सभी का हित करेगा  
+
सुन 'रक़ीब' इश्वर सभी का हित करेगा
 
ध्यान में रखना, तुझे जो माँगना है
 
ध्यान में रखना, तुझे जो माँगना है
 +
 
</poem>
 
</poem>

01:48, 30 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है
आप बतलायें हमें यह प्राथना है

कर सको जितनी अधिक सेवा करो बस
भूल मत जाना उसे जिसने जना है

ज्ञान की गंगा बहाये जो धरा पर
वह भगीरथ अब हमें फिर ढूँढना है

जानते हैं हम बहुत बलवान हो तुम
पर विरोधी को नहीं कम आंकना है

चार पैसे क्या हुये उड़ने लगे वह
मत उड़ें इतना यहीं सब छोड़ना है

नींद आँखों में भरी है, सोएगा कब
साथ सूरज के तुझे फिर जागना है

सुन 'रक़ीब' इश्वर सभी का हित करेगा
ध्यान में रखना, तुझे जो माँगना है