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"तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं | तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं | ||
− | कब, कहाँ, कैसे है जाना, ये बताने | + | कब, कहाँ, कैसे है जाना, ये बताने आए हैं |
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लेके कारें, हर तरह की, आए हैं छोटी बड़ी | लेके कारें, हर तरह की, आए हैं छोटी बड़ी | ||
− | बैक पुश वाली बसें, लेकर घुमाने | + | बैक पुश वाली बसें, लेकर घुमाने आए हैं |
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लौटकर आ जाएगा घाटी में फिर चैनो-अमन | लौटकर आ जाएगा घाटी में फिर चैनो-अमन | ||
− | देवियों, देवों को रूठे, हम मनाने आए हैं | + | देवियों, देवों को रूठे, हम मनाने आए हैं |
दूरदर्शन या सिनेमा ना किसी तस्वीर में | दूरदर्शन या सिनेमा ना किसी तस्वीर में | ||
− | जंगली जीवों को जंगल में दिखाने आए हैं | + | जंगली जीवों को जंगल में दिखाने आए हैं |
हो के हिन्दू , ना लगाईं डुबकियां ना जल पिया | हो के हिन्दू , ना लगाईं डुबकियां ना जल पिया | ||
− | इसलिए, फिर ज्ञान की गंगा बहाने | + | इसलिए, फिर ज्ञान की गंगा बहाने आए हैं |
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− | देख लो दुनिया है जितनी जब तलक है दम में दम | + | देख लो दुनिया है जितनी जब तलक है दम में दम |
कल की है किसको ख़बर हम ये बताने आए हैं | कल की है किसको ख़बर हम ये बताने आए हैं | ||
− | तितलियों के साथ उड़ते हैं ख़याल उनको 'रक़ीब' | + | तितलियों के साथ उड़ते हैं ख़याल उनको 'रक़ीब' |
गूंथकर अल्फाज़ की माला बनाने आए हैं | गूंथकर अल्फाज़ की माला बनाने आए हैं | ||
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16:46, 30 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं
कब, कहाँ, कैसे है जाना, ये बताने आए हैं
लेके कारें, हर तरह की, आए हैं छोटी बड़ी
बैक पुश वाली बसें, लेकर घुमाने आए हैं
लौटकर आ जाएगा घाटी में फिर चैनो-अमन
देवियों, देवों को रूठे, हम मनाने आए हैं
दूरदर्शन या सिनेमा ना किसी तस्वीर में
जंगली जीवों को जंगल में दिखाने आए हैं
हो के हिन्दू , ना लगाईं डुबकियां ना जल पिया
इसलिए, फिर ज्ञान की गंगा बहाने आए हैं
देख लो दुनिया है जितनी जब तलक है दम में दम
कल की है किसको ख़बर हम ये बताने आए हैं
तितलियों के साथ उड़ते हैं ख़याल उनको 'रक़ीब'
गूंथकर अल्फाज़ की माला बनाने आए हैं