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"गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं
मासेवा एक के कोई चारा नहीं
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बिन तुम्हारे मिरा अब गुज़ारा नहीं
 
बिन तुम्हारे मिरा अब गुज़ारा नहीं
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इसलिए मैंने उसको पुकारा नहीं
 
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क्यों ख़फ़ा हो गए क्या ख़ता है मिरी  
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हक़ तुम्हारा कभी हमने मारा नहीं
 
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हसरते-दीद दिल की, रही दिल में ही
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हसरत-ए-दीद दिल की, रही दिल में ही
तू ने ज़ुल्फ़ों को अपनी संवारा नहीं
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रुख से ज़ुल्फ़ों को तू ने हटाया नहीं
  
बू-ए-गुल की तरह है मिरी ज़िन्दगी
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मेरी आहों में हरगिज़ शरारा नहीं
 
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आज है कौन दुनिया में ऐसा 'रक़ीब'
 
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13:10, 5 फ़रवरी 2025 का अवतरण

गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं
पास मेरे तो अब कोई चारा नहीं

बिन तुम्हारे मिरा अब गुज़ारा नहीं
ये समझ लो कोई और चारा नहीं

जाने वाला कभी लौट आएगा ख़ुद
इसलिए मैंने उसको पुकारा नहीं

क्यों ख़फ़ा हो गए क्या ख़ता है मिरी
हक़ तुम्हारा कभी हमने मारा नहीं

हसरत-ए-दीद दिल की, रही दिल में ही
रुख से ज़ुल्फ़ों को तू ने हटाया नहीं

बू-ए-गुल की तरह है मिरी ज़िन्दगी
मेरी आहों में हरगिज़ शरारा नहीं

उसको ख़ुशियों की मंज़िल मुक़द्दर ने दी
मुश्किलों से जो इन्सान हारा नहीं

आज है कौन दुनिया में ऐसा 'रक़ीब'
गर्दिशे वक़्त ने जिसको मारा नहीं