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"भारत के शहनशाहों में एक ऐसा बशर था / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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ये साथ गुज़ारे हुए लम्हों का असर था | ये साथ गुज़ारे हुए लम्हों का असर था | ||
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अश्कों से मेरा दामने-दिल दोस्तो तर था | अश्कों से मेरा दामने-दिल दोस्तो तर था | ||
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− | मालूम हुआ उसका भी | + | मालूम हुआ उसका भी फ़ाक़ों पे गुज़र था |
कोई भी न थी नामा-ए-आमाल में नेकी | कोई भी न थी नामा-ए-आमाल में नेकी | ||
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इक बात बता मुझको 'रक़ीब' आज ख़ुदारा | इक बात बता मुझको 'रक़ीब' आज ख़ुदारा | ||
− | क्या दिल में | + | क्या दिल में तिरे भी कई असनाम का घर था |
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14:07, 6 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
भारत के शहनशाहों में एक ऐसा बशर था
शाइर था, सुख़नवर था, मुज़फ़्फ़र था, जफ़र था
दूरी भी रही और नहीं दूर रहे हम
ये साथ गुज़ारे हुए लम्हों का असर था
आधा ही छुपा रक्खा था चेहरा भी किसी ने
वो रात भी आधी ही थी आधा ही क़मर था
अच्छा ही हुआ धूप निकल आई बला की
अश्कों से मेरा दामने-दिल दोस्तो तर था
उम्मीद थी ख़ैरात की मुफ़लिस को जहां से
मालूम हुआ उसका भी फ़ाक़ों पे गुज़र था
कोई भी न थी नामा-ए-आमाल में नेकी
नेकी की जगह खाना-ए-नेकी में सिफ़र था
इक बात बता मुझको 'रक़ीब' आज ख़ुदारा
क्या दिल में तिरे भी कई असनाम का घर था