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"तुम लाजवाब थे और लाजवाब हो / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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तुम लाजवाब थे और लाजवाब हो
 
तुम लाजवाब थे और लाजवाब हो
 
ये किसने कह दिया तुम्हें तुम ख़राब हो
 
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पहले भी थे मगर अब लाजवाब हो
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किसने ये कह दिया तुमसे ख़राब हो
  
 
कलियों सा ढंग है, फूलों सा रंग है
 
कलियों सा ढंग है, फूलों सा रंग है
और चाँद की तरह, तुम पुर-शबाब हो
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मानिंद-ए-चाँद तुम पुर-शबाब हो
  
 
पढ़ता रहा तुम्हें, पढ़ता रहूँगा मैं
 
पढ़ता रहा तुम्हें, पढ़ता रहूँगा मैं
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दुनिया में लोग जो, दुश्मन हों प्यार के
 
दुनिया में लोग जो, दुश्मन हों प्यार के
इक दिन ख़ुदा करे, उन पर अज़ाब हो
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जैसे भी हो ख़ुदा उन पर अज़ाब हो
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क्या थे कभी कहो क्या हो गए 'रक़ीब'
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जब हो करम ख़ुदा, का बेहिसाब हो
  
होते हुए 'रक़ीब', तुम दिल के हो क़रीब
 
तुम पर करम ख़ुदा, का बेहिसाब हो
 
 
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01:51, 9 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण


तुम लाजवाब थे और लाजवाब हो
ये किसने कह दिया तुम्हें तुम ख़राब हो

पहले भी थे मगर अब लाजवाब हो
किसने ये कह दिया तुमसे ख़राब हो

कलियों सा ढंग है, फूलों सा रंग है
मानिंद-ए-चाँद तुम पुर-शबाब हो

पढ़ता रहा तुम्हें, पढ़ता रहूँगा मैं
कल भी किताब थे, अब भी किताब हो

मैं तुमसे आशना, तुम मुझसे आशना
फिर आज शर्म से, क्यों आब आब हो

क्या नाम तुमको दूं , और क्या मिसाल दूं
तुम आफताब हो, तुम माहताब हो

दुनिया में लोग जो, दुश्मन हों प्यार के
जैसे भी हो ख़ुदा उन पर अज़ाब हो

क्या थे कभी कहो क्या हो गए 'रक़ीब'
जब हो करम ख़ुदा, का बेहिसाब हो