भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
<poem>
 
<poem>
परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ  
+
परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ
असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ  
+
असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ
+
 
 
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
 
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ  
+
ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ
+
 
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है
+
मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ  
+
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ
   
+
 
 
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
 
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ  
+
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ
+
 
 +
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है
 +
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ
 +
 
 
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
 
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
हैं उनके पाँव में छाले, तो लरज़ीदा क़दम कुछ-कुछ  
+
हैं उनके पाँव में छाले, लरज़ते हैं क़दम कुछ-कुछ
+
 
मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो
+
मदद के वास्ते आये तो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ
+
हमें रखना है उसकी इस हिमाक़त का भरम कुछ-कुछ
+
 
क़रीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
+
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ-कुछ
+
 
</poem>
 
</poem>

23:58, 9 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ
असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ

वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ

मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ

ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ

ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ

ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
हैं उनके पाँव में छाले, लरज़ते हैं क़दम कुछ-कुछ

मदद के वास्ते आये तो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
हमें रखना है उसकी इस हिमाक़त का भरम कुछ-कुछ