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"परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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− | परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ | + | परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ |
− | असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ | + | असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ |
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वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में | वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में | ||
− | ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ | + | ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ |
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− | + | मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो | |
− | + | मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ | |
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ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों | ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों | ||
− | मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ | + | मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ |
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+ | ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है | ||
+ | ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ | ||
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ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको | ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको | ||
− | हैं उनके पाँव में छाले, | + | हैं उनके पाँव में छाले, लरज़ते हैं क़दम कुछ-कुछ |
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− | + | मदद के वास्ते आये तो चाहे हो 'रक़ीब' अपना | |
− | + | हमें रखना है उसकी इस हिमाक़त का भरम कुछ-कुछ | |
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23:58, 9 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ
असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ
मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
हैं उनके पाँव में छाले, लरज़ते हैं क़दम कुछ-कुछ
मदद के वास्ते आये तो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
हमें रखना है उसकी इस हिमाक़त का भरम कुछ-कुछ