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"ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए | ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए | ||
− | बन के | + | बन के ख़ुश्बू फ़ज़ा में बिखर जाइए |
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− | ये तो सच है नहीं कुछ कमी आप में | + | ये तो सच है नहीं कुछ कमी आप में |
− | + | हुस्ने-फितरत से भी कुछ सँवर जाइए | |
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गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो | गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो | ||
− | राहे | + | राहे पुरख़ार से यूं गुज़र जाइए |
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ठीक है, मुझ से मिलना, न चाहें अगर | ठीक है, मुझ से मिलना, न चाहें अगर | ||
मेरे दुश्मन के हरगिज़ न घर जाइए | मेरे दुश्मन के हरगिज़ न घर जाइए | ||
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− | जा रहे हैं तो, दे जाइए | + | जा रहे हैं तो, दे जाइए ज़ह्र कुछ |
आप इतना करम मुझ पे कर जाइए | आप इतना करम मुझ पे कर जाइए | ||
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− | + | वो पिघल जायेगा हाले ग़म देखकर | |
उसके कूचे में बा-चश्मे-तर जाइए | उसके कूचे में बा-चश्मे-तर जाइए | ||
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− | + | हुक्म पर आपके ख़न्दा-ज़न है 'रक़ीब' | |
− | उसकी | + | आप उसकी अदाओं पे मर जाइए |
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11:06, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए
बन के ख़ुश्बू फ़ज़ा में बिखर जाइए
ये तो सच है नहीं कुछ कमी आप में
हुस्ने-फितरत से भी कुछ सँवर जाइए
गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो
राहे पुरख़ार से यूं गुज़र जाइए
ठीक है, मुझ से मिलना, न चाहें अगर
मेरे दुश्मन के हरगिज़ न घर जाइए
जा रहे हैं तो, दे जाइए ज़ह्र कुछ
आप इतना करम मुझ पे कर जाइए
वो पिघल जायेगा हाले ग़म देखकर
उसके कूचे में बा-चश्मे-तर जाइए
हुक्म पर आपके ख़न्दा-ज़न है 'रक़ीब'
आप उसकी अदाओं पे मर जाइए