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"सुब्ह नौ की है तू रौशनी भी सनम / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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सुब्ह नौ की है तू रौशनी भी सनम   
 
सुब्ह नौ की है तू रौशनी भी सनम   
 
चौदवीं रात की चाँदनी  भी सनम
 
चौदवीं रात की चाँदनी  भी सनम
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रोज़ रातों को, ख़्वाबों में आना तेरा  
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रौशनी ही नहीं, तीरगी भी सनम
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चौदवीं रात की चाँदनी भी सनम
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रोज़ रातों को, ख़्वाबों में आना तेरा
 
आशिक़ी भी है, आवारगी भी सनम
 
आशिक़ी भी है, आवारगी भी सनम
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पैरहन और ख़ुशरंग हो जाएगा  
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पैरहन और ख़ुशरंग हो जाएगा
 
कासनी हो अगर, ओढ़नी भी सनम
 
कासनी हो अगर, ओढ़नी भी सनम
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फ़र्क कुछ भी नहीं, है अमल एक ही
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नाम पूजा का है, बन्दगी भी सनम
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सौ बरस तक जियो, क्या दुआ दें जहाँ
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मौत से कम नहीं, ज़िन्दगी भी सनम
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जान ''आज़ाद'' ने दी वतन के लिए
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बाइसे फ़ख़्र है, ख़ुदकुशी भी सनम
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पहले अफ़साने लिखता रहा है 'रक़ीब'
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अब वो करने लगा, शाइरी भी सनम
 
   
 
   
फ़र्क कुछ भी नहीं, है अमल एक ही
 
नाम पूजा का है, बन्दगी भी सनम 
 
 
सौ बरस तक जियो, क्या दुआ दें जहाँ
 
मौत से कम नहीं, ज़िन्दगी भी सनम 
 
 
जाँ गई तो गई, आबरू भी गई
 
ले गई नर्क में, ख़ुदकुशी  भी सनम
 
 
यूँ फसाने तो लिखता रहा है 'रक़ीब'
 
अब वो करने लगा, शाइरी  भी सनम         
 
 
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22:24, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

सुब्ह नौ की है तू रौशनी भी सनम
चौदवीं रात की चाँदनी भी सनम

रौशनी ही नहीं, तीरगी भी सनम
चौदवीं रात की चाँदनी भी सनम

रोज़ रातों को, ख़्वाबों में आना तेरा
आशिक़ी भी है, आवारगी भी सनम

पैरहन और ख़ुशरंग हो जाएगा
कासनी हो अगर, ओढ़नी भी सनम

फ़र्क कुछ भी नहीं, है अमल एक ही
नाम पूजा का है, बन्दगी भी सनम

सौ बरस तक जियो, क्या दुआ दें जहाँ
मौत से कम नहीं, ज़िन्दगी भी सनम

जान आज़ाद ने दी वतन के लिए
बाइसे फ़ख़्र है, ख़ुदकुशी भी सनम

पहले अफ़साने लिखता रहा है 'रक़ीब'
अब वो करने लगा, शाइरी भी सनम