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"इनकार मोहब्बत का करेगा तू कहाँ तक / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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इनकार मोहब्बत का करेगा तू कहाँ तक  
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आएगा कभी नाम मेरा तेरी जुबाँ तक  
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आएगा कभी नाम मिरा तेरी जुबाँ तक
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सीने में सुलगती रही इक आग अजब-सी  
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उठता हुआ देखा न कभी मैंने धुवाँ तक  
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उठता हुआ देखा न कभी मैंने धुवाँ तक
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मिल जुल के चलो प्यार का संसार बसाएँ  
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मिल जुल के चलो प्यार का संसार बसाएँ
तनहा न बना पाएँगे हम एक मकाँ तक  
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तनहा न बना पाएँगे हम एक मकाँ तक
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ये राह मोहब्बत की, मोहब्बत का सफ़र है  
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ये राह मोहब्बत की, मोहब्बत का सफ़र है
इस राह पे ले चल तू मुझे चाहे जहाँ तक  
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इस राह पे ले चल तू मुझे चाहे जहाँ तक
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शातिर हो बड़े प्यार की शतरंज में तुम भी  
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शातिर हो बड़े, प्यार की शतरंज में तुम भी
देखेंगे न खाओगे भला मात कहाँ तक  
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देखेंगे न खाओगे भला मात कहाँ तक
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निकली है सदा मेरे तड़पते हुए दिल से  
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निकली है सदा मेरे तड़पते हुए दिल से
पहुँचेगी जमाने में हर इक पीरो-जवाँ तक  
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कहते हो 'रक़ीब' अपना हबीब आज मुझे तुम  
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कहते हो 'रक़ीब' अपना हबीब आज मुझे तुम
ये बात तो अच्छी है मगर सिर्फ़ बयाँ तक          
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ये बात तो अच्छी है मगर सिर्फ़ बयाँ तक
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22:39, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

इनकार मोहब्बत का करेगा तू कहाँ तक
आएगा कभी नाम मिरा तेरी जुबाँ तक

सीने में सुलगती रही इक आग अजब-सी
उठता हुआ देखा न कभी मैंने धुवाँ तक

मिल जुल के चलो प्यार का संसार बसाएँ
तनहा न बना पाएँगे हम एक मकाँ तक

ये राह मोहब्बत की, मोहब्बत का सफ़र है
इस राह पे ले चल तू मुझे चाहे जहाँ तक

शातिर हो बड़े, प्यार की शतरंज में तुम भी
देखेंगे न खाओगे भला मात कहाँ तक

निकली है सदा मेरे तड़पते हुए दिल से
पहुँचेगी जमाने में हर इक पीरो-जवाँ तक

कहते हो 'रक़ीब' अपना हबीब आज मुझे तुम
ये बात तो अच्छी है मगर सिर्फ़ बयाँ तक