"भग्नांश / गायत्रीबाला पंडा / शंकरलाल पुरोहित" के अवतरणों में अंतर
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− | जब भी | + | जब भी किसी स्त्री से मुलाक़ात करती हूँ मैं |
− | मुझे लगता | + | मुझे लगता है |
− | दो | + | दो हिस्सों में से एक भाग है वह |
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− | चार, पाँच, छह या सात | + | या चार, पाँच, छह या सात हिस्सों में से |
− | पता नहीं कितने | + | बस, एक भाग है वह |
− | स्वयं को | + | पता नहीं कितने हिस्सों में |
+ | स्वयं को बाँट लेती जै वह। | ||
− | पता नहीं कौन सा | + | पता नहीं उसका कौन सा हिस्सा |
− | खड़ा होता मेरे सामने! | + | खड़ा होता है तब मेरे सामने ! |
केवल बाँटने नहीं | केवल बाँटने नहीं | ||
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मुझे विकल करता, परेशान | मुझे विकल करता, परेशान | ||
जिसे अंश का एक भाग | जिसे अंश का एक भाग | ||
− | दूसरे भाग को खोजता जा | + | दूसरे भाग को खोजता जा रहा । |
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+ | '''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित''' | ||
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21:09, 19 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
जब भी किसी स्त्री से मुलाक़ात करती हूँ मैं
मुझे लगता है
दो हिस्सों में से एक भाग है वह
तीन हिस्सों में से एक भाग है
या चार, पाँच, छह या सात हिस्सों में से
बस, एक भाग है वह
पता नहीं कितने हिस्सों में
स्वयं को बाँट लेती जै वह।
पता नहीं उसका कौन सा हिस्सा
खड़ा होता है तब मेरे सामने !
केवल बाँटने नहीं
यों असंख्य प्रकार नारी
अपने को माँगती
कभी चटख जाती
कभी दहल जाती
टूटने से पहले
अचानक स्थित होती
कभी डहक उठती
कभी कच्चे मांस का स्वाद बन
किसी की कामना वृद्धि करती
कभी नदी-सी नाल चंचल हो
आगे बह जाती।
जब भी मैं भेंटती किसी नारी से
हिसाब-किताब करने लगती
इधर-उधर से टुकड़े चुगती, सारे सजाती
किसी में न मिलती संपूर्ण नारी।
हर बार कोई भग्नांश
मुझे विकल करता, परेशान
जिसे अंश का एक भाग
दूसरे भाग को खोजता जा रहा ।
मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित
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