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"अदब नवाज़ कोई है, कोई सिकंदर है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जिसे ख़राब मानकर किसी ने छोड़ दिया
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वही किसी की नज़र में बहुत ही सुन्दर है
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बड़े बुजुर्ग आस्था इसी को कहते हैं
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जो मान लो तो देवता नहीं तो पत्थर है
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कहाँ मैं बंद कोठरी में फँस गया आकर
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इससे अच्छा तो मेरे गाँव का वो छप्पर है
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सुलग रहे अनेक ख़्वाब मेरे सीने में
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धुआँ- धुआँ  सा हर तरफ़  अजीब मंज़र है
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मेरे नसीब में ही प्यास लिक्खी है शायद
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वरना है क्या कमी इस शहर में समंदर है
 
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21:49, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

अदब नवाज़ कोई है, कोई सिकंदर है
किसी के हाथ में क़लम,किसी के ख़ंजर है

यहाँ पे दो तरह के लोग पाये जाते हैं
विवश है कोई तो कोई ख़ुदा के ऊपर है

जिसे ख़राब मानकर किसी ने छोड़ दिया
वही किसी की नज़र में बहुत ही सुन्दर है

बड़े बुजुर्ग आस्था इसी को कहते हैं
जो मान लो तो देवता नहीं तो पत्थर है

कहाँ मैं बंद कोठरी में फँस गया आकर
इससे अच्छा तो मेरे गाँव का वो छप्पर है

सुलग रहे अनेक ख़्वाब मेरे सीने में
धुआँ- धुआँ सा हर तरफ़ अजीब मंज़र है

मेरे नसीब में ही प्यास लिक्खी है शायद
वरना है क्या कमी इस शहर में समंदर है