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"शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आँसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे
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अपनों के दिए ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता
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जितना भी झूठ बोलना चाहे वो बोल ले
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फिर भी वो सही बात छुपा भी नहीं सकता
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घनघोर कुहासे में जो लिपटा हुआ हो खुद
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सूरज वो सवेरा नया ला भी नहीं सकता
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ईमान से बढ़कर के नहीं है कोई दौलत
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सोया ज़मीर कोई जगा भी नहीं सकता
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मत भूलिए कि चाँद की कितनी है अहमियत
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तारों से कोई रात सजा भी नहीं सकता
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पूरा हुआ जो वक़्त तो जाना ही पड़ेगा
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कोई हकीम, बैद बचा भी नहीं सकता
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फूलों की अहमियत को न यूँ दरकिनार कर
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मुरझा गये तो उनको खिला भी नहीं सकता
 
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21:50, 4 मार्च 2025 का अवतरण

जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता
जो खो नहीं सकता है वो पा भी हीं सकता

आँसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे
अपनों के दिए ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता

जितना भी झूठ बोलना चाहे वो बोल ले
फिर भी वो सही बात छुपा भी नहीं सकता

घनघोर कुहासे में जो लिपटा हुआ हो खुद
सूरज वो सवेरा नया ला भी नहीं सकता

ईमान से बढ़कर के नहीं है कोई दौलत
सोया ज़मीर कोई जगा भी नहीं सकता

मत भूलिए कि चाँद की कितनी है अहमियत
तारों से कोई रात सजा भी नहीं सकता

पूरा हुआ जो वक़्त तो जाना ही पड़ेगा
कोई हकीम, बैद बचा भी नहीं सकता

फूलों की अहमियत को न यूँ दरकिनार कर
मुरझा गये तो उनको खिला भी नहीं सकता