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"शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं | |
− | + | धुआँ भी उठे तो उठे लोग चुप हैं | |
− | + | ज़रा सी नहीं फ़िक्र शायद किसी को | |
− | + | ख़ज़ाना लुटे तो लुटे लोग चुप हैं | |
− | + | कहाँ होगा फिर पंछियों का बसेरा | |
− | फिर | + | शज़र ये कटे तो कटे लोग चुप हैं |
− | + | सभी को पड़ी है यहाँ सिर्फ़ अपनी | |
− | + | पड़ोसी मरे तो मरे लोग चुप हैं | |
− | + | यहाँ लोग भगवान के हैं भरोसे | |
− | + | जो सूखा पड़े तो पड़े लोग चुप हैं | |
− | + | अलीगढ़ के ताले लगाकर के बैठे | |
− | + | भले पाप फूले फले लोग चुप हैं | |
− | + | न घर में दिये हैं, न बाहर मशालें | |
− | + | अँधेरा बढ़े तो बढ़े लोग चुप हैं | |
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21:52, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण
शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं
धुआँ भी उठे तो उठे लोग चुप हैं
ज़रा सी नहीं फ़िक्र शायद किसी को
ख़ज़ाना लुटे तो लुटे लोग चुप हैं
कहाँ होगा फिर पंछियों का बसेरा
शज़र ये कटे तो कटे लोग चुप हैं
सभी को पड़ी है यहाँ सिर्फ़ अपनी
पड़ोसी मरे तो मरे लोग चुप हैं
यहाँ लोग भगवान के हैं भरोसे
जो सूखा पड़े तो पड़े लोग चुप हैं
अलीगढ़ के ताले लगाकर के बैठे
भले पाप फूले फले लोग चुप हैं
न घर में दिये हैं, न बाहर मशालें
अँधेरा बढ़े तो बढ़े लोग चुप हैं