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"सच्चाई की सिर्फ़ वकालत करता हूँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | नफ़रत से रखता हूँ ख़ुद को अलग मगर | ||
+ | कुदरत की हर शै से मुहब्बत करता हूँ | ||
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21:54, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण
सच्चाई की सिर्फ़ वकालत करता हूँ
ख़ुद से भी बेख़ौफ़ बग़ावत करता हूँ
यारों से भी लड़ना मुझको आता है
दुश्मन पर भी मगर इनायत करता हूँ
जो मासूमों की हत्यायें करती हो
तन्हा, उस लश्कर की ख़िलाफत करता हूँ
जिसके शासन में जनता भूखी सोती
उस शासक की खूब मलामत करता हूँ
दुनियादारी यूँ मुझको भी आती है
पर न कभी अपनों से शिकायत करता हूँ
ईश्वर की पूजा से बेशक दूर रहूँ
मानवता की मगर इबादत करता हूँ
नफ़रत से रखता हूँ ख़ुद को अलग मगर
कुदरत की हर शै से मुहब्बत करता हूँ