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"ये हमारे दौर की उपलब्धियाँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ये हमारे दौर की उपलब्धियाँ
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शहर की भी हो रहीं गुल बत्तियाँ
  
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कौन पढ़ता है गरीबों की यहाँ
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डस्टबिन में जा रहीं सब अर्जियाँ
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होंठ पर तो बर्फ़ जैसे है जमी
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आँख  में ही कुछ बची हैं सुर्खियाँ
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कल तलक जो शख़्स था घबरा रहा
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उसकी भी चढ़ने लगीं अब त्योरियाँ
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मौत के अतिरिक्त क्या बाँटेगा वो
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जो ज़हर की कर रहा है खेतियाँ
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फल की क्या उम्मीद हो उस पेड़ से
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जो चबा जाता हो अपनी पत्तियाँ
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लोग तो चेहरे पे हो जाते फ़िदा
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देखता है कौन दिल की खूबियाँ
 
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21:57, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

ये हमारे दौर की उपलब्धियाँ
शहर की भी हो रहीं गुल बत्तियाँ

कौन पढ़ता है गरीबों की यहाँ
डस्टबिन में जा रहीं सब अर्जियाँ

होंठ पर तो बर्फ़ जैसे है जमी
आँख में ही कुछ बची हैं सुर्खियाँ

कल तलक जो शख़्स था घबरा रहा
उसकी भी चढ़ने लगीं अब त्योरियाँ

मौत के अतिरिक्त क्या बाँटेगा वो
जो ज़हर की कर रहा है खेतियाँ

फल की क्या उम्मीद हो उस पेड़ से
जो चबा जाता हो अपनी पत्तियाँ

लोग तो चेहरे पे हो जाते फ़िदा
देखता है कौन दिल की खूबियाँ