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"खाये पिये अघाये लोग / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | देश में कहाँ ग़रीबी है | ||
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+ | गर्मी हमें भी लगती है | ||
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+ | ताक़तवर सब उधर खड़े | ||
+ | इधर तो सिर्फ़ सताये लोग | ||
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+ | साधू बनकर घूम रहे | ||
+ | अपना जुर्म छुपाये लोग | ||
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+ | उनमें कहाँ जमीर बचा | ||
+ | वो हैं नज़र झुकाये लोग | ||
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+ | सुबह न हो कल क्या मालूम | ||
+ | आस हैं मगर लगाये लोग | ||
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22:26, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण
खाये पिये अघाये लोग
हैं बनठन कर आये लोग
पाचन शक्ति बढ़ाने को
धरम का चूरन लाये लोग
देश में कहाँ ग़रीबी है
मुद्दा यही उठाये लोग
हम तो छप्पर वाले, वो
रेत के महल उठाये लोग
गर्मी हमें भी लगती है
समझें नहीं जुड़ाये लोग
ताक़तवर सब उधर खड़े
इधर तो सिर्फ़ सताये लोग
साधू बनकर घूम रहे
अपना जुर्म छुपाये लोग
उनमें कहाँ जमीर बचा
वो हैं नज़र झुकाये लोग
सुबह न हो कल क्या मालूम
आस हैं मगर लगाये लोग