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"मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो
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तलवार रख दिए तो क्या क़लम तो उठा लो
  
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वो काम करो दुनिया रखे याद हमेशा
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कटता है शीश कटने दो पर शान बचा लो
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ईमान से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
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पुरखों ने कही है ये बात दिल में बसा लो
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जल्लाद के  यूँ ख़ौफ़ से घुटने न टेक दो
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बेशक फ़कीर के समक्ष सर को झुका लो
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जो  ख़ास  हो के भी कहीं नीचे पड़े हुए
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गर  हो सके तो उनको भी  काँधे पे बिठा लों
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बदले की भावना कभी दिल में नहीं रखो
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दुश्मन भी सुधर जाय तो गले से लगा लो
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पैसे दिखा के क्या पता क्या -क्या वो छीन ले
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मिलती जो मुफ़्त में वो ग़रीबों की दुआ लो
 
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22:27, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो
तलवार रख दिए तो क्या क़लम तो उठा लो

वो काम करो दुनिया रखे याद हमेशा
कटता है शीश कटने दो पर शान बचा लो

ईमान से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
पुरखों ने कही है ये बात दिल में बसा लो

जल्लाद के यूँ ख़ौफ़ से घुटने न टेक दो
बेशक फ़कीर के समक्ष सर को झुका लो

जो ख़ास हो के भी कहीं नीचे पड़े हुए
गर हो सके तो उनको भी काँधे पे बिठा लों

बदले की भावना कभी दिल में नहीं रखो
दुश्मन भी सुधर जाय तो गले से लगा लो

पैसे दिखा के क्या पता क्या -क्या वो छीन ले
मिलती जो मुफ़्त में वो ग़रीबों की दुआ लो