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"क्या - क्या नहीं बाज़ार में इस बार बिक गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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क्या - क्या नहीं बाज़ार में इस बार बिक गया
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सस्ते में मेरी क़ौम का सरदार बिक गया
  
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जाने भी दो यारो न करो उसकी कोई बात
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जिस पर था बड़ा नाज़ वो किरदार बिक गया
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कैसी है ये दुनिया कोई बतलाय तो मुझको
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इस पार बिक गया कोई , उस पार बिक गया
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इससे कहीं अच्छा था कि तन्हा ही मैं होता
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जिससे था मुझे इश्क़ वो दिलदार बिक गया
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मैंने भी अमीरी की बनाई थी योजना
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क़र्ज़ा अदा करने में ही घरबार बिक गया
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लालच के बड़े जाल में क्या वह भी फँस चुका
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तुमको ख़बर नहीं है वो खुद्दार बिक गया
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पर, यह भी हुआ ठीक विभीषण से छूटा पिंड
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लंका का जो भेदी था वो मक्कार बिक गया
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आखिर में मगर हाथ कुछ भी आ नहीं सका
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पछता वो अब रहा है कि बेकार बिक गया
 
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22:28, 4 मार्च 2025 के समय का अवतरण

क्या - क्या नहीं बाज़ार में इस बार बिक गया
सस्ते में मेरी क़ौम का सरदार बिक गया

जाने भी दो यारो न करो उसकी कोई बात
जिस पर था बड़ा नाज़ वो किरदार बिक गया

कैसी है ये दुनिया कोई बतलाय तो मुझको
इस पार बिक गया कोई , उस पार बिक गया

इससे कहीं अच्छा था कि तन्हा ही मैं होता
जिससे था मुझे इश्क़ वो दिलदार बिक गया

मैंने भी अमीरी की बनाई थी योजना
क़र्ज़ा अदा करने में ही घरबार बिक गया

लालच के बड़े जाल में क्या वह भी फँस चुका
तुमको ख़बर नहीं है वो खुद्दार बिक गया

पर, यह भी हुआ ठीक विभीषण से छूटा पिंड
लंका का जो भेदी था वो मक्कार बिक गया

आखिर में मगर हाथ कुछ भी आ नहीं सका
पछता वो अब रहा है कि बेकार बिक गया