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"जो है सबको पता वो छुपाने चले / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ये नहीं देखते उस तरफ़ बाज़ हैं
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इस तरफ़ से कबूतर उड़ाने चले
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ये हमारी कमी ही कही जायगी
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अंधों को आइना जो दिखाने चले
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ऐसे हमदर्द भी हमने देखे बहुत
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चोट दे कर जो मरहम लगाने चले
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खोट क्या उनके दिल में समझ जाइए
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हमसे चलनी से पानी भराने चले
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मूँदकर आँख विश्वास करते हैं जो
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उनको धोखे से माहुर खिलाने चले
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कद्र करता नहीं है वो गर आपकी
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साथ क्यों आप उसका निभाने चले
 
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15:31, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण

जो है सबको पता वो छुपाने चले
आग खुद ही लगाकर बुझाने चले

ये नहीं देखते उस तरफ़ बाज़ हैं
इस तरफ़ से कबूतर उड़ाने चले

ये हमारी कमी ही कही जायगी
अंधों को आइना जो दिखाने चले

ऐसे हमदर्द भी हमने देखे बहुत
चोट दे कर जो मरहम लगाने चले

खोट क्या उनके दिल में समझ जाइए
हमसे चलनी से पानी भराने चले

मूँदकर आँख विश्वास करते हैं जो
उनको धोखे से माहुर खिलाने चले

कद्र करता नहीं है वो गर आपकी
साथ क्यों आप उसका निभाने चले