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"सब सियासी दाँव उल्टे पड़ गये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | ठहर कर पोखर बने जो, सड़ गये | ||
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15:32, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण
सब सियासी दाँव उल्टे पड़ गये
लोग हक़ पाने को अपना अड़ गये
बाद में जो होगा देखा जायगा
हम अकेले फ़ौज से भी लड़ गये
वक़्त को केवल बदलने की थी देर
खुदबखुद तूफ़ान औ अंधड़ गये
पेड़ भी है और शाखाएँ भी हैं
पर, सुहाने फूल, पत्ते झड़ गये
हम उन्हें तन्क़ीद देने थे चले
वो हमारे ही गले अब पड़ गये
जो बहे बेफ़िक्र हो दरिया बने
ठहर कर पोखर बने जो, सड़ गये