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"जिसे नूरे नज़र समझा था वो आँखों का धोखा था / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जिसे नूरे - नज़र समझा था वो आँखों का धोखा था
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गिला किससे करूँ मेरा मुकद्दर ही कुछ ऐसा था
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वही क़ातिल मेरा निकला कि जिससे खूं का रिश्ता था
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लदा जब पेड़ फल से हक़ जताने सब चले आये
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कहाँ थे लोग सारे तब वो जब नन्हा सा पौधा था
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बड़े पद पर पहुँच करके ग़रीबी भूल जायेगा
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किसी मजदूर का बेटा कभी मैंने न सोचा था
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सरेबाज़ार मैं  बदनाम होकर लौट आया  हूँ
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किसी को दोष क्या  दूँ जब मेरा सिक्का ही खोटा था
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मुझे उपहार में ऐसी मिली थी ज़िन्दगानी ही
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भले सुंदर था उसका फ्रेम शीशा किंतु चटका था
 
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16:00, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण

जिसे नूरे - नज़र समझा था वो आँखों का धोखा था
बना फिरता था जो लख्ते - जिगर वो ख़्वाब झूठा था

गिला किससे करूँ मेरा मुकद्दर ही कुछ ऐसा था
वही क़ातिल मेरा निकला कि जिससे खूं का रिश्ता था

लदा जब पेड़ फल से हक़ जताने सब चले आये
कहाँ थे लोग सारे तब वो जब नन्हा सा पौधा था

बड़े पद पर पहुँच करके ग़रीबी भूल जायेगा
किसी मजदूर का बेटा कभी मैंने न सोचा था

सरेबाज़ार मैं बदनाम होकर लौट आया हूँ
किसी को दोष क्या दूँ जब मेरा सिक्का ही खोटा था

मुझे उपहार में ऐसी मिली थी ज़िन्दगानी ही
भले सुंदर था उसका फ्रेम शीशा किंतु चटका था