"बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! | + | {{KKCatKavita}} |
− | + | <poem>बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! | |
नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, | नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, | ||
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प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में, | प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में, | ||
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प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में, | प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में, | ||
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शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में | शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में | ||
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कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ! | कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ! | ||
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बीन भी हूँ मैं... | बीन भी हूँ मैं... | ||
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नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ, | नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ, | ||
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शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ, | शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ, | ||
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फूल को उर में छिपाए विकल बुलबुल हूँ, | फूल को उर में छिपाए विकल बुलबुल हूँ, | ||
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एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ, | एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ, | ||
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दूर तुमसे हूँ अखंड सुहागिनी भी हूँ! | दूर तुमसे हूँ अखंड सुहागिनी भी हूँ! | ||
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बीन भी हूँ मैं... | बीन भी हूँ मैं... | ||
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आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के, | आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के, | ||
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शून्य हूँ जिसके बिछे हैं पाँवड़े पलके, | शून्य हूँ जिसके बिछे हैं पाँवड़े पलके, | ||
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पुलक हूँ जो पला है कठिन प्रस्तर में, | पुलक हूँ जो पला है कठिन प्रस्तर में, | ||
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हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में, | हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में, | ||
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नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ! | नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ! | ||
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बीन भी हूँ मैं... | बीन भी हूँ मैं... | ||
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नाश भी हूँ मैं अनंत विकास का क्रम भी | नाश भी हूँ मैं अनंत विकास का क्रम भी | ||
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त्याग का दिन भी चरम आसिक्त का तम भी, | त्याग का दिन भी चरम आसिक्त का तम भी, | ||
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तार भी आघात भी झंकार की गति भी, | तार भी आघात भी झंकार की गति भी, | ||
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पात्र भी, मधु भी, मधुप भी, मधुर विस्मृति भी, | पात्र भी, मधु भी, मधुप भी, मधुर विस्मृति भी, | ||
− | + | अधर भी हूँ और स्मित की चांदनी भी हूँ</poem> | |
− | अधर भी हूँ और | + |
13:46, 25 मार्च 2025 के समय का अवतरण
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!
नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में
कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ!
बीन भी हूँ मैं...
नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ,
शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ,
फूल को उर में छिपाए विकल बुलबुल हूँ,
एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ,
दूर तुमसे हूँ अखंड सुहागिनी भी हूँ!
बीन भी हूँ मैं...
आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के,
शून्य हूँ जिसके बिछे हैं पाँवड़े पलके,
पुलक हूँ जो पला है कठिन प्रस्तर में,
हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में,
नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ!
बीन भी हूँ मैं...
नाश भी हूँ मैं अनंत विकास का क्रम भी
त्याग का दिन भी चरम आसिक्त का तम भी,
तार भी आघात भी झंकार की गति भी,
पात्र भी, मधु भी, मधुप भी, मधुर विस्मृति भी,
अधर भी हूँ और स्मित की चांदनी भी हूँ