भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जैसे किसी बाग़ी का झण्डा / नाज़िम हिक़मत / मनोज पटेल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=मनोज पटेल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा - गोरा माथा | ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा - गोरा माथा | ||
+ | आज कोई रंज नहीं, कोई उदासी नहीं — | ||
+ | कत्तई नहीं ! ... | ||
− | + | आज नाज़िम हिकमत की बीवी को बहुत ख़ूबसूरत दिखना है | |
− | + | जैसे किसी बाग़ी का झण्डा ...! | |
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' | ||
</poem> | </poem> |
06:35, 29 मार्च 2025 का अवतरण
{KKGlobal}}
04 1945
अपने वही कपड़े निकालो
जिन्हें पहने हुए थीं तब,
जब मुझसे मिली थीं पहली बार ।
सबसे सुन्दर नज़र आओ आज
वसन्त ऋतु के पेड़ों की तरह
अपने जूड़े में वह कारनेशन का फूल लगाओ
जो मैंने तुम्हें जेल से भेजा था एक चिट्ठी में ...।
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा - गोरा माथा
आज कोई रंज नहीं, कोई उदासी नहीं —
कत्तई नहीं ! ...
आज नाज़िम हिकमत की बीवी को बहुत ख़ूबसूरत दिखना है
जैसे किसी बाग़ी का झण्डा ...!
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल