भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीने के बाद अब तो फ़क़त मर रहा हूँ मैं / पुष्पराज यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पराज यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:34, 30 मार्च 2025 के समय का अवतरण
जीने के बाद अब तो फ़क़त मर रहा हूँ मैं
जो काम अपने हाथ है वह कर रहा हूँ मैं
आती नहीं है मौत तो मेरा भी क्या कसूर
कोशिश तो ख़ुदकुशी की बहुत कर रहा हूँ मैं
अब तो दिखा तू जिस्म से बाहर का रास्ता
ता-उम्र इसकी क़ैद के अन्दर रहा हूँ मैं
ठुकरायेगी मुझे भी किसी रोज़ ज़िन्दगी
इक बेवफ़ा-सी चीज़ पर क्यों मर रहा हूँ मैं
तुम लोग जिसको हुस्न-ए-ग़ज़ल कह रहे हो आज
मुद्दत से उसकी रग में लहू भर रहा हूँ मैं