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"किरन-धेनुएँ / नरेश मेहता" के अवतरणों में अंतर

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हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला।
  
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हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला।<br><br>
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नभ में बादल बन तिरता<br>
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वसुधा हँस-हँस कर गले मिली
किरन-धेनुओं का समूह यह<br>
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चमका अपने स्वर्ण सींग वे
आया अन्धकार चरता, <br>
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नभ की आम्रछाँह में बैठा बजा रहा वंशी रखवाला।<br><br>
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बरस रहा आलोक-दूध है
वसुधा हँस-हँस कर गले मिली<br>
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खेतों खलिहानों में
चमका अपने स्वर्ण सींग वे<br>
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जीवन की नव किरन फूटती
अब शैलों से उतर चलीं।<br><br>
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मकई औ’ धानों में
 
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जीवन की नव किरन फूटती<br>
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मकई औ’ धानों में<br>
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सरिताओं में सोम दुह रहा वह अहीर मतवाला।
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15:12, 10 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण

उदयाचल से किरन-धेनुएँ
हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला।

पूँछ उठाए चली आ रही
क्षितिज जंगलों से टोली
दिखा रहे पथ इस भूमा का
सारस, सुना-सुना बोली

गिरता जाता फेन मुखों से
नभ में बादल बन तिरता
किरन-धेनुओं का समूह यह
आया अन्धकार चरता,
नभ की आम्रछाँह में बैठा बजा रहा वंशी रखवाला।

ग्वालिन-सी ले दूब मधुर
वसुधा हँस-हँस कर गले मिली
चमका अपने स्वर्ण सींग वे
अब शैलों से उतर चलीं।

बरस रहा आलोक-दूध है
खेतों खलिहानों में
जीवन की नव किरन फूटती
मकई औ’ धानों में
सरिताओं में सोम दुह रहा वह अहीर मतवाला।