भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी किताबों के आख़िरी शब्द / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=अनिल जनवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

22:24, 11 अप्रैल 2025 का अवतरण

ये मत सोचो
कि कला के होंठों का
स्वाद कड़वा है —
                  कड़वे खीरे की तरह ...

मेरी कविताओं में
                 मेरे आँसुओं का स्वाद नहीं है,
उनमें तो मेरा दर्द भरा है —
समुद्री नमक की तरह ।

१९२९