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22:25, 11 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण
ये मत सोचो
कि कला के होंठों का
स्वाद कड़वा है —
कड़वे खीरे की तरह ...
मेरी कविताओं में
मेरे आँसुओं का स्वाद नहीं है,
उनमें तो मेरा दर्द भरा है —
समुद्री नमक की तरह ।
1929