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"आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ
 
आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ
बारहा रोज़ो-शब जो पढ़े देख लूँ
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मैंने भी रोज़-ओ-शब जो पढ़े देख लूँ
  
फिर से बन-ठन के महफ़िल में आओ ज़रा
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फिर से महफ़िल में सज धज के आओ ज़रा
आज जलवे मैं फिर आपके देख लूँ
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आज जल्वे मैं फिर आपके देख लूँ
  
ज़ख़्म दिल के बहुत वक़्त ने भर दिए
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ज़ख़्म दिल के तो कुछ वक़्त ने भर दिए
कितने बाक़ी हैं अब अध भरे देख लूँ
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और कितने अभी रह गये देख लूँ
  
पेड़-पौदे लगाए थे बचपन में जो
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पेड़ पौदे लगाए थे बचपन में जो
आज गुलशन में उनको हरे देख लूँ
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है तमन्ना कि उनको हरे देख लूँ
  
फ़ितरतन सबको दी है खुशी उम्र भर
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फ़ितरतन बाँट दीं सबको ख़ुशियाँ मगर
ज़िंदगी में बहुत ग़म सहे देख लूँ
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रंजो-ग़म जो मिले हैं मुझे देख लूँ
  
यादे माज़ी से महफ़िल सजी है अभी
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याद-ए-माज़ी का महफ़िल में है तज़्किरा
उम्र भर के सभी मरहले देख लूँ
+
पेश आए थे जो हादसे देख लूँ
  
 
मुझको सोने दे अब तू भी सो जा 'रक़ीब'
 
मुझको सोने दे अब तू भी सो जा 'रक़ीब'
ख़्वाब में तू मुझे मैं तुझे देख लूँ
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ख़्वाब में तू मुझे, मैं तुझे देख लूँ
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13:44, 15 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण

आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ
मैंने भी रोज़-ओ-शब जो पढ़े देख लूँ

फिर से महफ़िल में सज धज के आओ ज़रा
आज जल्वे मैं फिर आपके देख लूँ

ज़ख़्म दिल के तो कुछ वक़्त ने भर दिए
और कितने अभी रह गये देख लूँ

पेड़ पौदे लगाए थे बचपन में जो
है तमन्ना कि उनको हरे देख लूँ

फ़ितरतन बाँट दीं सबको ख़ुशियाँ मगर
रंजो-ग़म जो मिले हैं मुझे देख लूँ

याद-ए-माज़ी का महफ़िल में है तज़्किरा
पेश आए थे जो हादसे देख लूँ

मुझको सोने दे अब तू भी सो जा 'रक़ीब'
ख़्वाब में तू मुझे, मैं तुझे देख लूँ