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"होते जब भी दंगे फसाद / सूर्यकुमार पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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(सूर्यकुमार पांडेय की कविता)
 
 
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होते जब भी दंगे फसाद
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होते जब भी दंगे - फसाद
 
बढ़ता है जब आतंकवाद
 
बढ़ता है जब आतंकवाद
 
उभाद करे जब घोर नाद
 
उभाद करे जब घोर नाद
गांधी आते हैं बहुत याद।
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गांधी आते हैं बहुत याद ।
  
 
घिरता है जब घनघोर तिमिर
 
घिरता है जब घनघोर तिमिर
चिंता के बादल जाते घिर
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चिन्ता के बादल जाते घिर
 
है राह कोई सूझती न फिर
 
है राह कोई सूझती न फिर
 
जब हिंसक हो उठते विवाद
 
जब हिंसक हो उठते विवाद
गांधी आते हैं बहुत याद।
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गांधी आते हैं बहुत याद ।
  
 
जब संकट के पर्वत टूटे
 
जब संकट के पर्वत टूटे
 
अपने ही अपनों को लूटे
 
अपने ही अपनों को लूटे
जब बढ़ते हई जाएँ झूठे
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जब बढ़ते ही जाएँ झूठे
 
करता असत्य जब जब निनाद
 
करता असत्य जब जब निनाद
गांधी आते हैं बहुत याद।
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गांधी आते हैं बहुत याद ।

14:20, 19 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण

होते जब भी दंगे - फसाद
बढ़ता है जब आतंकवाद
उभाद करे जब घोर नाद
गांधी आते हैं बहुत याद ।

घिरता है जब घनघोर तिमिर
चिन्ता के बादल जाते घिर
है राह कोई सूझती न फिर
जब हिंसक हो उठते विवाद
गांधी आते हैं बहुत याद ।

जब संकट के पर्वत टूटे
अपने ही अपनों को लूटे
जब बढ़ते ही जाएँ झूठे
करता असत्य जब जब निनाद
गांधी आते हैं बहुत याद ।