भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बहुरूपिया / फणीश्वर नाथ रेणु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फणीश्वर नाथ रेणु |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
हँसती है  
 
हँसती है  
 
उँगलियाँ उठा कहती है ...  
 
उँगलियाँ उठा कहती है ...  
कहकहे कसती है -
+
कहकहे कसती है
राम रे राम!  
+
राम रे राम !  
 
क्या पहरावा है  
 
क्या पहरावा है  
 
क्या चाल-ढाल  
 
क्या चाल-ढाल  
 
सबड़-झबड़  
 
सबड़-झबड़  
 
आल-जाल-बाल  
 
आल-जाल-बाल  
हाल में लिया है भेख?  
+
हाल में लिया है भेख ?  
जटा या केश?  
+
जटा या केश ?  
 
जनाना-ना-मर्दाना  
 
जनाना-ना-मर्दाना  
 
या जन .......  
 
या जन .......  
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
हो-पहरावे-ओढ़ावे  
 
हो-पहरावे-ओढ़ावे  
 
चाल-ढाल  
 
चाल-ढाल  
उसकी रुचि, पसंद के अनुसार  
+
उसकी रुचि, पसन्द के अनुसार  
 
या रुचि का  
 
या रुचि का  
 
सजाया-सँवारा पुतुल मात्र,  
 
सजाया-सँवारा पुतुल मात्र,  
 
मैं  
 
मैं  
 
मेरा पुरुष  
 
मेरा पुरुष  
बहुरूपिया।
+
बहुरूपिया ।
 
</poem>
 
</poem>

01:17, 1 मई 2025 के समय का अवतरण

दुनिया दूषती है
हँसती है
उँगलियाँ उठा कहती है ...
कहकहे कसती है —
राम रे राम !
क्या पहरावा है
क्या चाल-ढाल
सबड़-झबड़
आल-जाल-बाल
हाल में लिया है भेख ?
जटा या केश ?
जनाना-ना-मर्दाना
या जन .......
अ... खा... हा... हा.. ही.. ही...
मर्द रे मर्द
दूषती है दुनिया
मानो दुनिया मेरी बीवी
हो-पहरावे-ओढ़ावे
चाल-ढाल
उसकी रुचि, पसन्द के अनुसार
या रुचि का
सजाया-सँवारा पुतुल मात्र,
मैं
मेरा पुरुष
बहुरूपिया ।