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"बाज़ के डर से आसमां नहीं छोड़ा जाता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हर समय आप बही ले के बैठ जायेंगे
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ज़िन्दगी में नफ़ा - नुकसान‌ तो होता जाता
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दोस्तों, दुश्मनों, अपनों का हो कि ग़ैरों का
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वो किसी का हो भरोसा नहीं तोड़ा जाता
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पितृसत्ता की गर्त से वो मगर  कब निकली
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एक औरत को बार -बार दबाया जाता
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चार दिन के लिए बच्चों का बचपना होता
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पुस्तकें दे के खिलौना नहीं छीना जाता
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दर्द क्या आपके दिल में नहीं होता होगा
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जब हरा पेड़ कोई सामने काटा जाता
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सच की तारीफ़ तो झूठे भी लोग करते हैं
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सच का जो हाल है लेकिन न वो देखा जाता
 
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18:08, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

बाज़ के डर से आसमां नहीं छोड़ा जाता
पार जाने का रास्ता कोई ढूँढा जाता

हर समय आप बही ले के बैठ जायेंगे
ज़िन्दगी में नफ़ा - नुकसान‌ तो होता जाता

दोस्तों, दुश्मनों, अपनों का हो कि ग़ैरों का
वो किसी का हो भरोसा नहीं तोड़ा जाता

पितृसत्ता की गर्त से वो मगर कब निकली
एक औरत को बार -बार दबाया जाता

चार दिन के लिए बच्चों का बचपना होता
पुस्तकें दे के खिलौना नहीं छीना जाता

दर्द क्या आपके दिल में नहीं होता होगा
जब हरा पेड़ कोई सामने काटा जाता

सच की तारीफ़ तो झूठे भी लोग करते हैं
सच का जो हाल है लेकिन न वो देखा जाता