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"कलई उतर गई हुआ नंगा समाजवाद / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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कलई उतर गई हुआ नंगा समाजवाद
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सोचा तो क्या था मैंने क्या निकला समाजवाद
  
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टोपी बराबरी की तो पहना दिया सबको
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पर  जेब सिर्फ़ अपनी  भर रहा  समाजवाद
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जनता रहे भूखी मज़े लें दावतों के आप
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देखा सुना नहीं कभी ऐसा समाजवाद
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लड़ने का दम नहीं तो कटोरा लिए हुए
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पूँजीपती के द्वार पे पहुँचा समाजवाद
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सपने दिखा रहा है वो बस सब्ज़बाग़ के
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लेकिन है हक़ीक़त में दिखावा समाजवाद
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नेता से मिलके मैंने  राज  जान लिया है
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फंडा है राजभोग तो झंडा समाजवाद
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दावे थे सभी खोखले , अब पोल खुल चुकी
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देखा है छद्म से भरा झूठा समाजवाद
 
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18:11, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

कलई उतर गई हुआ नंगा समाजवाद
सोचा तो क्या था मैंने क्या निकला समाजवाद

टोपी बराबरी की तो पहना दिया सबको
पर जेब सिर्फ़ अपनी भर रहा समाजवाद

जनता रहे भूखी मज़े लें दावतों के आप
देखा सुना नहीं कभी ऐसा समाजवाद

लड़ने का दम नहीं तो कटोरा लिए हुए
पूँजीपती के द्वार पे पहुँचा समाजवाद

सपने दिखा रहा है वो बस सब्ज़बाग़ के
लेकिन है हक़ीक़त में दिखावा समाजवाद


नेता से मिलके मैंने राज जान लिया है
फंडा है राजभोग तो झंडा समाजवाद

दावे थे सभी खोखले , अब पोल खुल चुकी
देखा है छद्म से भरा झूठा समाजवाद