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"जुल्मो सितम का सामना करना पड़ा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया  कहीं बुज़दिल  न मुझको मान ले
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हुंकार बन करके  मुझे उठना पड़ा
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जब भ्रष्ट सिस्टम से  हुई टक्कर मेरी
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होकर विवश  बाग़ी मुझे बनना पड़ा
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आतंक की जब इंतहा होने लगी
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प्रतिरोध करके ना मुझे कहना पड़ा
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एहसान बनकर बोझ बन जाता हो जो
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उस गिफ़्ट से, उपहार से बचना पड़ा
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चाहा था मैंने अपनी शर्तों पर जिऊँ
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बस इसलिए असमय मुझे मरना पड़ा
 
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18:14, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

जुल्मो सितम का सामना करना पड़ा
मजबूर हो करके मुझे लड़ना पड़ा

दुनिया कहीं बुज़दिल न मुझको मान ले
हुंकार बन करके मुझे उठना पड़ा

जब भ्रष्ट सिस्टम से हुई टक्कर मेरी
होकर विवश बाग़ी मुझे बनना पड़ा

आतंक की जब इंतहा होने लगी
प्रतिरोध करके ना मुझे कहना पड़ा

एहसान बनकर बोझ बन जाता हो जो
उस गिफ़्ट से, उपहार से बचना पड़ा

चाहा था मैंने अपनी शर्तों पर जिऊँ
बस इसलिए असमय मुझे मरना पड़ा